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सफर - मौत से मौत तक….(ep-42)










विष्णुरेकादशी गंगा तुलसीविप्रधेवनः।
असारे दुर्गसंसारे षट्पदी मुक्तिदायिनी।।

नंदू के मृत्यु का तेरहवाँ दिन…….
नंदू अंकल और यमराज भी आज वर्तमान में थे, 

समीर पंडित जी द्वारा मंत्रों के उच्चारण के बाद कहे जाने वाले कार्यो को कर रहा था, जौ, तिल, पत्तियां और जलपात्र सामने रखकर चावलों से पिंड बनाते हुए अलग अलग पत्तो में रख रहा था।

इशानी अपने मम्मी पापा के साथ पीछे बैठी थी,  तुलसी सरला और अडोसी पड़ोसी भी आ चुके थे, लेकिन नंदू अंकल की नजर राजू और मन्वी कि राह ताक रहे थे।

लेकिन राजू और मन्वी अभी घर पर ही थे,
मन्वी ने राजू से कहा-  "पापा आप जाईये….मैं बाद में आऊंगी"

राजू ने अपनी ऑटो स्टार्ट की और चला गया।

थोड़ी देर में ही वहाँ पहुंच चुका था, सब ठीक चल रहा था, घर के बाहर टेंट लगाया हुआ था ताकि लोग आराम से बैठकर भोजन कर सके।

सब लोग श्रद्धा भाव से इस हवन में बैठे थे, राजू भी अब आकर एक किनारे खड़ा हो गया। थोड़ी ही देर में सारे कार्यक्रम अच्छी तरह से हो चुका था। पंडित जी ने भी दान दक्षिणा ग्रहण किया और इजाज़त मांगने लगे।

राजू ने मन्वी को फोन किया
"हाँ बेटा, नंदू का अंतिम सद्गति का काम पूर्ण हो चुका है, सब मेहमानों ने खाना खा लिया और जाने लगे है, बस पन्द्रह बीस मिनट तक आ जाना , क्योकि सद्गति के बाद भी  लगता नही उसकी आत्मा को शांति मिली होगी, तुम आ जाओ थोड़ी देर में"

थोड़ी देर में  मन्वी भी वहाँ आ गयी  लेकिन तन्वी के आने तक सब अंदर आ चुके थे,
टेंट वाले अपना टेंट भी उतारकर ले जाने लगे थे।
मन्वी जानबूझकर देर से आई थी।

इशानी ने उसे आते हुए देखा तो टोकते हुए बोली- "ये कोई आने का टाइम है, अब तो कार्यक्रम खत्म हो गया है"

"हम जब आते है कार्यक्रम तब शुरू होते है, कोई बात नही एक कार्यक्रम खत्म भी हो गया तो" मन्वी बोली

"समीर तुम्हारे मेहमान आये है" इशानी ने आवाज देते हुए कहा।

"राजु इशानी कि तरफ देखकर बोला- "अरे बेटा! समीर के मेहमान मतलब तुम्हारे भी मेहमान…."

"समीर के मेहमान , मेरे भी मेहमान कैसे हो सकते है…" इशानी बोली।

"जब समीर का घर तुम्हारा घर, समीर की गाड़ी तुम्हारी गाड़ी हो सकती है तो समीर के मेहमान क्यो नही हो सकते"  राजू बोला।

"नही हो सकते….और मैं ना आपको जानती हूँ न इस लड़की को, समीर जानते होंगे तो उसके मेहमान ही होंगे ना"  इशानी बोली।

तभी समीर भी बाहर आ गया जो कि धोती कुर्ता पहनकर तँग आ चुका था इतने दिन, आज जाकर उतरे थे वो सफेद पोशाकें।
"क्या हुआ इशानी, क्या बात हो गयी"  समीर ने इशानी की तरफ कहा तभी उसकी नजर मन्वी पर पड़ी
"अरे मन्वी तुम…लेकिन इतने लेट….अब तो आने का कोई फायदा नही, पापा के साथ क्यो नही आई तुम" समीर बोला।

"वो कुछ जरूरी काम आ गया था, लेकिन अब तसल्ली से आई हूँ, कुछ सवाल जवाब करने है नंदू अंकल के बारे में" कहते हुए मन्वी एक अलग ही अकड़ में सोफे पर जा बैठी।
जैसे क्राइम ब्रांच की हेड होगी।

"मतलब….मैं कुछ समझा नही"  समीर बोला।

मन्वी ने उसे और इशानी को एक साथ बैठने को कहा लेकिन इशानी अपने कमरे की तरफ़ जाने लगी।

मन्वी चिल्लाते हुए बोली- "इशानी….सुना नही तुमने….मैंने कहा मेरे सामने बैठो……"
इतनी कड़क आवाज थी कि इशानी पूरी तरह से हिल चुकी थी। उसके कदम बहुत कोशिश करके भी आगे नही बढ़ सके।

वापस अपने शांत लहजे में वापस आते हुए मन्वी शांत होते हुए बोली- "कुछ खास बात करनी है, प्यार से करोगे आपका फायदा है, वरना तरीके बहुत होते है अपनी बात पहुंचाने के"

"मन्वी तुम किस बारे में बात कर रही हो, मेरे कुछ समझ नही आ रहा"  समीर बोला।

इशानी को याद आया की ये तो वही मन्वी है जिसे उसके ससुर ने समीर के लिए पसंद किया था।
इशानी के कुछ समझ नही आया कि उसे अंदर भाग जाना चाहिए या फिर आकर समीर के साथ बैठना चाहिए।

तभी समीर बोल पड़ा- "इशानी सुना नही तुमने….इधर आओ….हम गलत नही है तो हमे किसी के सवालो से डरने की कोई जरूरत नही है। और ये तो मेरी दोस्त है कोई पुलिसवाली नही" 

"इशानी मन्वी की आंखों में आंखे डालते हुए सोफे की तरफ आयी, इशानी के आंखों में तो था ही गुस्सा, लेकिन मन्वी के आंखों में तो आग सी थी, क्योकि उसे पता था कि इशानी ही नंदू अंकल के मौत का जिम्मेदार है।

यमराज मन्वी को देखकर बहुत प्रसन्न थे, क्योकि वो नंदू को न्याय दिलाने के पथ पर चल रही थी, लेकिन यमराज को आज नंदू पर बहुत गुस्सा आ रहा था। सुबह जब से गौरी मिली थी पता नही कहाँ लापता हो गए थे।


*****


उधर नंदू और गौरी दोनो उस झील के पास गए थे, जहाँ अक्सर समीर अकेले तन्हाई में माँ से मन्नत मांगने आया करता था।

नंदू अंकल ने अपने हाथ मे गौरी का हाथ थामा था और कह रहे थे -" उस दिन के बाद मैं रात दिन तुम्हारी याद में कितना रोया तुम सोच भी नही सकती"

"जानती हूँ, कितना रोये ये भी जानती हूँ और मेरी याद कितनी आती थी ये भी जानती हूँ, आप अकेले नही रोते थे मैं भी रोती थी  साथ, आपका रोना मुझे बहुत तकलीफ देता था, मैं बहुत कोशिश करती थी कि आप मुझे भूल जाये मगर आप कहाँ मानने वालों में से थे, इतना काफी ना हुआ तो ना जाने कौन सी फ़िल्म देखी की तस्वीर से बात करना सीख गए, मेरी तस्वीर के सामने आकर कहानिया मुझे सुनाने लगे थे, मुझसे दिल की बात करने लगे थे….मुझे तड़पाने का और कोई रास्ता नही मिला क्या तुम्हें…." गौरी ने कहा

"क्या करता….तन्हा अकेले रहना मेरे वश की बात नही थी" नंदू बोला।

"चलो अब तो मिल गए है ना…. मैं आपका इंतजार करते करते थकने लगी थी" गौरी बोली।

"अब तो इंतजार पूरा हो गया,अब किस बात का गम है"  नंदू बोला।

"लेकिन जिस तरह आप आये वो अच्छा नही लगा" गौरी बोली।

"तो क्या करता मैं…. क्या करता ऐसे बेटे के साथ रहकर जो जिंदगी भर उसके लिए किए गए त्याग को एक पल में भुला दे। अभी समय ही कितना हुआ था उस इशानी को आये हुए, मुझसे ज्यादा यकीन था उसे उसपर" नंदू ने कहा।

"खुद को समीर और मुझे इशानी की जगह रखकर देखो…. क्या मैं आपको कुछ कहती तो आप मेरी बात पर बिल्कुल यकीन नही करते क्या" गौरी बोली।

"मेरा सारा यकीन तो तुम थी गौरी, मैं तुमपर बहुत भरोसा करता था, लेकिन आंखों में पट्टी बांधकर नही, मैं तुमपर भरोसा भी करता तो अपने बाबूजी के पक्ष में भी जरूर देखता" नंदू बोला।

"लेकिन इशानी ने सबूत पेश किया था, उसके पास पुख्ता गवाह था, यकीन करने का मन समीर का भी नही था,लेकिन उसे यकीन करना पड़ा, उसने इशानी पर नही पुष्पा की बातों पर यकीन किया था। मैं नही मानती समीर गलत है, हाँ  उसने गुस्से में आकर अपनी मर्यादा जरूर लांघ ली थी, और आपको उल्टा सीधा बोला ये उसकी गलती है" गौरी बोली।

"तो इनकी गलती पर क्या सजा देना है इनको… " नंदू बोला।

"सज़ा देने वाले हम कौन होते है, सजा देने वाले तो वही रुके है "गौरी बोली।

"अरे हाँ यम्मु……" नंदू बोला।

उधर यम्मु खड़ा खड़ा मन्वी का धमाल देख रहा था।

गौरी ने अपने आगे समीर और इशानी को बिठाकर कहा- "नंदू अंकल ने फांसी क्यो लगाई"

"अपनी टेंशन में आकर….काश की एक बार बात कर ली होती हमसे, हमसे अपनी परेशानी बाँट ली होती" समीर बोला।

"आपको बिल्कुल भी नही पता है क्या परेशानी की वजह" मन्वी ने पूछा।

"जब कभी बताते तब पता लगता ना….हमसे ना जाने क्या दुश्मनी थी कभी बात नही करते थे" इशानी बोल पड़ी।

"मैंने ये सवाल समीर से किया है तुमसे नहीं, अपना मुंह तब खोलना जब मैं कोई सवाल करूँ"  मन्वी ने कहा।

पास में खड़ी स्नेहा को मन्वी की बात पर गुस्सा आया, और वो तपाक से बोल पड़ी- "ओ….हेलो….तुम होती कौन हो सवाल जवाब करने वाली, कोई इतनी खुशी की बात नही हुई जो इंटरव्यू लेने पहुंच गई, कौन से सवाल कब कर चाहिए पता नही तुम्हे"

"आँटी जी….आपकी तारीफ" मन्वी बोली।

"मेरी मम्मी है वो" इशानी बोल पड़ी।

"ओह….तो तुम इनकी बिगड़ी हुई औलाद हो" मन्वी बोल पड़ी।

"शट अप" जोर से चिल्लाते हुए समीर बोला।

"बहुत देर से तुम्हारी बकवास सुन रहा हूँ उसका कारण यही है कि मैं आप लोगो की बेइज्जती करके आज के दिन पापा को दुखी नही कर सकता, और तुम हो कि हद पार किये जा रही हो" समीर बोला।

"ओह….बीवी को कोई गलत बोले तो आपको बुरा लगता है…" मन्वी बोली।

"तुम्हे बुरा बोलूँगा तो क्या तुम्हारे पापा सुन लेगें, उन्हें भी बुरा लगेगा ना"  समीर बोला।

"लेकिन वकील साहब, जब ये नंदू अंकल को बुरा बोलती थी तब क्यो नही लगता था आपको बुरा" मन्वी ने कहा।

"तुम कहना क्या चाहती हो साफ साफ कहो, हमे और भी काम है" समीर बोला।

"चलो साफ साफ बोल देती है, नंदू अंकल ने किसी टेंशन में फ़ांसी नही लगाई, आप लोगो ने मजबूर किया है उन्हें फांसी  लगाने के लिए" मन्वी ने कहा।

"तुम जानती भी हो कि तुम क्या कह रही हो?" समीर बोला।

"हाँ मैं अच्छी तरह जानती हूँ, मैं सोच समझकर ही बोलती हूँ हमेशा….अगर बिना सोचे समझे कुछ करना या कहना होता तो मैं अकेले नही आती, पुलिस वाले भी मेरे साथ होते" मन्वी बोली।

"पुलिस वाले…." हैरानी से समीर  ने पूछा।

"तुम्हे क्या लगता है कि आप लोग बाते छिपाएंगे और छिपी रहेंगी, हम जानते है आपके पापा ने नौकरानी को छेड़ दिया था, और पकड़े गए, कुछ ऐसा ही सीन था ना" मन्वी बोली।

"मन्वी प्लीज… अब उनकी इज्जत पर कीचड़ मत उछालो, उनकी इज्जत के खातिर ही हमने ये राज छिपाकर रखा है"  समीर बोला।

"जितना तुम जानते हो उसे राज नही कहते समीर….उसे झूठ का पर्दा कहते है….और तुमने झूठ को सच समझकर छिपाया है, असली राज तो इशानी ने छिपाया है" मन्वी ने कहा।

इशानी तो जैसे पसीना पसीना होने लगी थी।
हकलाते हुए इशानी ने कहा - म….मैंने क्या राज छुपाया….मैंने तो बस सच छुपाया ताकि घर की इज्जत बची रहे।"

"झूठ को सच बनाकर समीर को बताया, और फिर पुलिस से छिपाने का बहाना….उफ्फ्फ….कितना दिमाग लगाती हो तुम इशानी….लेकिन ये भूल जाती हो कि बिकाऊ चीज़ अक्सर बिक ही जाती है…." मन्वी ने कहा
 
मन्वी ने आवाज देते हुए कहा- "पुष्पा……….अंदर आओ"

पुष्पा जो अभी तक बाहर ही खड़ी थी अंदर आयी।

उसे देखते ही इशानी के होश उड़ गए, पुष्पा सिर झुकाए खड़ी थी। एक बार डरते डरते समीर और इशानी की तरफ देखा और फिर वापस नजर झुका ली।

"पुष्पा , तुम बताओ कितना छेड़ा तुम्हे नंदू अंकल ने" मन्वी बोली।

"ये सब इसकी चाल है, समीर ये मन्वी मुझे फसाने की कोशिश कर रही है" इशानी बोली और सोफे से खड़े होकर पुष्पा का हाथ पकड़कर उसे घर से बाहर का रास्ता दिखाते हुए बोली - "कहा था ना दोबारा नजर मत आना….तूने ही पैसो के लिए ससुरजी को उकसाया होगा ये सब करने के लिए, जब वो नही माने तो इल्जाम लगा दिया होगा, अच्छे से जानती हो मैं तुझ जैसी गिरी हुई औरत को" कहते हुए इशानी ने दरवाजा खोला और पुष्पा को धक्का मारने लगी तो देखा दरवाजे पर पुलिस खड़ी थी।

इशानी डरते हुए बोली- "अरे इंस्पेक्टर साहब, आप लेट आये है, कार्यक्रम तो खत्म हो गया।"

"हाँ! लेट आने के लिए माफी चाहते है, हमे तो दस दिन पहले आ जाना चाहिए था, लेकिन तब ना हमारे पास गवाह था ना सबूत.….ना ही हम सोच सकते थे एक वकील की वाइफ इस तरह की घटिया हरकत कर सकती है।" पुलिस वाले ने कहा।

"ये क्या बकवास कर रहे हो शर्मा जी……जानते भी हो किससे बात कर रहे हो आप" समीर ने कहा।

इंस्पेक्टर ने पुष्पा का बाजू पकड़ा और अंदर को धकियाते हुए बोले
"कैसे वकील हो आप…. कानून की तो पढ़ाई की होगी आपने तो….जानते नही किसी को सुसाइड करने के लिए मजबूर करने जुल्म है।"

"लेकिन पापा ने अपनी गलती से शर्मिंदा होकर ऐसा गलत कदम उठाया, मैं मानता हूँ कि बहुत गलत हुआ, और अफसोस भी है कि पापा अब इस दुनिया मे नही रहे।" समीर बोला।

"कितना अफसोस है वो तो दिख रहा है" मन्वी बोल पड़ी।

"मेरी बात सुनो मन्वी….जरूरी नही अपने दुख दर्द को रो रोकर ही दिखाया जाए, इतना कमजोर नही है मेरा दिल…अंदर से टूट चुका है ये….जब भी कुछ सोचता हूँ तो बीती बाते और पापा की यादे ही याद आती है, लेकिन फिर जब सोचता हूँ कि उन्हें अंत मे हमारे साथ जो किया, शर्म आने लगती है….मैं चाहता तो उसी दिन पुष्पा को गलत बोलकर घर से निकाल देता, और पापा को कुछ नही कहता, लेकिन जिसकी गलती हो उसे ही उसकी सजा देने के चक्कर मे मैंने उन्हें थोड़ा बुरा भला कहा था, लेकिन सुसाइड करने के लिए प्रेरित नही किया था।" समीर बोला।

"लेकिन तुम जानते भी तो नही थे कि गलती किसकी थी…. क्या तुमने देखा था उन्हें छेड़ते हुए….क्या सबूत था तुम्हारे पास……." राजू ने समीर से कहा।

राजू ने फिर समीर के पास जाते हुए कहा "एक बात बोलूँ बेटा….मैं और नंदू एक साथ रिक्शा चलाते थे, मेरी बेटी साथ है मुझे बोलना तो नही चाहिए लेकिन जब बात सच्चाई की है तो मुझे बोलना पड़ेगा, मेरी तो बीवी है फिर भी कई बार अगर दो लोग एक साथ रिक्शे की तरफ आये जिसमे एक सुंदर लड़की या महिला होती और एक कोई आदमी तो मैं हमेशा लड़की को बिठाता था, ये आज की नही बहुत पुरानी बात है जब तुम छोटे छोटे होते थे, लेकिन नंदू….वो जो पहले आएगा, जिसने ज्यादा दूर जाना होगा, जिसने पहले बात की थी उसी को ले जाता था।  मैं जहाँ ज्यादा औरतों का झुंड खड़ा होता था वहाँ ज्यादा घंटी बजाने लगता था, और वो… वो वहाँ सिर्फ इसलिये घंटी नही बजाता था कि वो लोग गलत ना समझे… और क्या क्या बताऊ मैं उसके बारे में, मैंने तो तीन चार लड़कियों से बात कर ली थी नंदू की शादी के लिए, मगर कभी शादी नही किया उसने, तेरी दादी और मैं पीछे पड़ जाते थे उसके ……खैर ये सब तुझे बताकर कोई फायदा नही….ना तू अपने पापा को समझ पाया था ना कभी उनके प्यार को समझ पाया था।"
 
समीर शर्मिंदगी से गर्दन झुकाए था, लेकिन इशानी सिर्फ पुष्पाकली को आंखे दिखाकर डराने की कोशिश में लगी हुई थी।

यमराज ने राजू की बात सुनी तो खुद से कहा- "अपनी तरफ सुनने तो नंदू है नही यहाँ….पता नही कहाँ चला गया….लगता है मुझे ही कुछ करना पड़ेगा" कहते हुए झट से यमराज वही चले गए जहां नंदू गौरी बैठे हुए थे और दोनो को अगले ही पल वापस घर ले आया।

"देखो बस कुछ देर हो यहाँ आप लोग, उसके बाद वॉयस जाना है, अंतिम समय मे देख लो अपने बच्चों का हश्र" यमराज दोनो से बोला।

मन्वी ने पुष्पाकली के पास आते हुए कहा- "एक बार सभी लोगो के सामने  बता दो सब सच…. कुछ लोगो की आंखों में पट्टी बहुत कसकर बंधी हुई है, तुम ही खोल सकती हो"

"मुझे पता है मन्वी तुमने इसे पैसे खिलाये है….अब ये वही बोलेगी जो तुम इसे पट्टी पढ़ाकर लायी हो….समीर तुमसे शादी करने से मना क्या कर दिया उस दिन….तुम इस तरीके से बदला लोगी मैं सोच भी नही सकती थी….समीर याद है तुम्हे जब ये तुमसे शादी करने आई थी, अब कोई लड़का जब इस तरह मना करके बेईज्जती करे तो ईगो तो हर्ट होगा ही ना" इशानी बोली।

नंदू ने इशानी की बात सुनी तो हैरान रह गया- "अरे इसने तो पासा ही पलट दिया, उल्टा इल्जाम मन्वी पर लगा दिया"

"आप क्यो फिक्र कर रहे हो मन्वी कि, मन्वी ने वकालत भले ही नही की होगी लेकिन पढ़ी लिखी और समझदार है वो……जरूर कोई रास्ता निकाल लेगी" गौरी ने कहा।

समीर बारी बारी दोनो की तरफ देख रहा था, उसके समझ नही आ रहा था कि आखिर क्यों सच बोल रहा है और कौन झूठ।

"ये क्या चल रहा है पुष्पाकली….देखो सच सच बोलो क्या बात हुई थी" समीर बोला।

पुष्पाकली डरते हुए बोली- इशानी मैडम सही बोल रही है, जब से मैं नौकरी छोड़कर गयी थी मुझे कही नौकरी नही मिल रही। , मेरे तीन छोटे छोटे बच्चे है, मुझे नौकरी की सख्त जरूरत थी।  मन्वी ने कहा था कि अगर ऐसा बोलोगी तो इशानी जेल चली जायेगी और मैं समीर से शादी कर लुंगी, और उसके बाद तुझे नौकरी पर रखूंगी, सैलरी भी ज्यादा दूँगी….प्लीज मालिक मुझे माफ़ कर दीजिए मैं इसकी बातो मैं आ गयी थी….प्लीज मुझे माफ़ कर दो।"

"शाबाश पुष्पाकली… तू एक्टर जबरदस्त है, मजा आ गया" इशानी ने सोचा

जबकि मन्वी के पैरों तले जमीन ही खिसक गई थी, उसे कुछ समझ नही आया कि आखिर ये क्या हुआ।

कहानी जारी है


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6 Comments

Zaifi khan

30-Nov-2021 04:53 PM

Nice

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Ammar khan

30-Nov-2021 11:04 AM

Very nice

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Khan sss

29-Nov-2021 07:43 PM

Good

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